नज़राना इश्क़ का (भाग : 10)
सुबह होते ही जाह्नवी रोज की तरह निमय को जगाने लगी, मगर उस ने जागने के बजाए खर्राटों का शोर बढ़ा दिया। निमय की यह हरकत देखते ही जाह्नवी को जोर का गुस्सा आया, उस ने उसकी चादर हटाते हुए पीठ पर जोर की चपत लगा दिया!
"उठ जा घोंचू, खुद ही फाइटिंग करने का बोलकर डर के मारे बिस्तर में घुसा पड़ा है।" जाह्नवी उसको चपत लगाने के बाद दोनो हाथ कमर पर रखकर, मुंह बिचकाते चिल्लाते हुए बोली। "हे भगवान! क्या मेरे करम इतने बुरे थे जो मुझे ऐसा घोंचू भाई झेलना पड़ रहा है!" जाह्नवी छत की ओर देखते हुए मुंह बिचकाकर बोली।
"नहीं बालिके! अवश्य ही तुमने कोई पुण्य कर्म किया है जिस कारण तुम्हें ऐसा भाई मिला है!" जाह्नवी के कानों में धीमा स्वर सुनाई दिया।
"उठ जा गधे!" जाह्नवी के ऐसा कहते ही निमय ने उसके बाल खींच लिए।
"छोड़ ना, देख मेरे बालों से मजाक नहीं छोड़ ना..!" जाह्नवी ने अपने बालों को छुड़ाने की नाकाम कोशिश करते हुए कहा।
"ये क्या सुबह सुबह भोंपू की तरह बजने लगती है बे, चुपचाप से सोने दे मुझे!" निमय ने उसके बालों को जोर से खींचते हुए कहा, जाह्नवी चिल्लाते हुए उसके हाथ पर जोर जोर से मारने लगी।
"छोड़ ना बे गैंडे! रुक अभी बताती हूं मम्मी को!" जाह्नवी ने निमय के बाल पकड़ लिए और वह भी खींचने लगी।
"पहले तू मेरे छोड़ फिर मैं तेरा छोडूंगा!" निमय ने मुंह फुलाकर बैठते हुए कहा, मगर जाह्नवी पर जैसे इसका कोई प्रभाव ही नहीं पड़ा।
"रुक तू, अब बता ही देती हूं मम्मी को, मम्मी देख लो मुझे बेकार में तंग कर रहा है!" जाह्नवी ने जोर से चिल्लाने की कोशिश की मगर निमय ने उसके बालों को छोड़कर उसके मुंह को दोनो हाथों से भींचकर बंद कर दिया। मौका देखते ही जाह्नवी ने उसके बाल खींचकर उसके हाथ को घुमाते हुए उसकी हथेली को दांत से काट दिया।
"उई मां! मुझको भी दर्द होता है बे!" निमय ने अपना हाथ झटकते हुए कहा।
"ओ...! बस हो गया तेरा? हार मान गया? परसो तो बड़ा तीस मार खां बन रहा था हुंह..!" जाह्नवी ने मुंह टेढ़ा करते हुए चिढ़ाया।
"मैं तो आज बस इसलिए कुछ नहीं कर रहा कि कहीं कल के जैसे डर के मारे सदमे में ना चली जाए!" निमय ने उसको आंखें तरेरते हुए कहा।
"चल बे झूठा! तुझ से तो मेरी जूती भी ना डरे। अपनी हार को छिपाने के बहाने मत बना कह दे रही हूं, हार मान ले जान बख्श दूंगी तेरी!" जाह्नवी ने इतराते हुए कहा, उसके चेहरे पर सुबह के सूरज की तरह चमक फैली हुई थी।
"ठीक है तू चल, मै आता हूं मुंह धो के!" कहते हुए निमय कमरे से बाहर जाने लगा।
"ठीक है यहीं घर पे नल लगा है उसी में धो लेना, कहीं ऐसा ना हो कि डर के मारे लोटा उठाकर हिमालय की और निकल दो..!" जाह्नवी ने अपने कमर पर दोनो हाथ रखे इतराते हुए कहा।
"हुंह..! तुझसे तो एक चींटी भी ना डरे.!" निमय ने मुंह बनाया।
"मतलब तू खुद को चींटी से भी गया गुजरा हुआ मानता है ना?" जाह्नवी ने हीही कर दांत निपोरते हुए कहा।
"तेरे को तो अभी बताऊंगा मैं छिपकली! चूहा देखकर ऐसे भागती है जैसे पीछे पीपल का भूत पड़ गया हो, बड़ी आई मुझे डराने!" मुंह धोते हुए निमय चिल्लाकर बोला, उसके लहजे में हास्य व्यंग्यात्मक पुट था।
"आज तो तेरा जबड़ा टूटेगा बेटा! मान ले कि तू हार गया मुझसे!" कहते हुए जाह्नवी नीचे उतर गई, जहां दोनो को फाइटिंग की प्रैक्टिस करना था।
"जब तुम्हें कोई ऐसे पकड़े या पकड़ने की कोशिश करे…" निमय ने जाह्नवी के बाएं हाथ को पकड़कर मरोड़ते हुए बताने लगा।
"तो मरोड़ने की दिशा में घूमकर पकड़ने वाले के मुंह पर जोरदार किक बजा दो!" जाह्नवी ने तेजी से मुड़कर किक मारते हुए कहा, उसका पैर निमय के चेहरे से कुछ दूरी पर रुक गया।
"ये तूने कहां से सीखा?" निमय हैरान था।
"अबे घोंचू जब रात भर बड़ बड़ करता रहेगा तो इंसान कैसे सोएगा!"
"तो..!"
"तो क्या? तू रात भर यही किक, पंच, टर्न, बैक, हिट यही बड़ाबड़ा रहा था, वही से सीखी।" जाह्नवी ने उसके हाथ को मरोडते हुए कहा।
"तभी मोहतरमा सुबह सुबह मेरे हाथ की हथेली खा गई, जबकि यहां काटना मुश्किल ही नहीं बहुत मुश्किल होता है।" निमय ने अपने सिर पर हाथ मारा।
"एक बाद याद रखना मिस्टर घोंचू, मैं यानी कि जाह्नवी शर्मा, हमेशा तुमसे चार कदम आगे रहेगी।" जाह्नवी ने इठलाते हुए मुस्कुराकर कहा।
'मुझे भी तो बस यही चाहिए मेरी जान!' निमय मुस्कुराते हुए बुदबुदाया।
"क्या बोला? क्या बोला?" जाह्नवी उसके बिलकुल पास जाते हुए पूछी।
"कुछ नहीं! देख पापा नहा धो चुके, अब जा तू भी नहीं तो लेट हो जायेगी।" निमय ने पापा की ओर इंगित करते हुए कहा।
"नहीं अब से मैं उनके साथ नहीं जाऊंगी!" जाह्नवी ने मुस्कुराते हुए कहा।
"तो?" निमय आज हैरान पर हैरान हुआ जा रहा था।
"क्या तो? वो रास्ता उनको थोड़ा उल्टा पड़ता है। मैंने तो पापा को बोल भी दिया है।" जाह्नवी चहकते हुए बोली।
"तो मतलब जायेगी कैसे?" निमय ने अपनी ठुड्ढी पर हाथ रख सोचते हुए पूछा।
"क्या मतलब? मतलब का क्या मतलब बनता है यहां? तेरे साथ जाऊंगी, बात खत्म!" जाह्नवी अपने हाथ झाड़कर वहां से जाते हुए बोली।
"क्या?" निमय हैरान खड़ा उसकी शक्ल निहार रहा था शायद यकीन करने की कोशिश कर रहा था कि जाह्नवी ने जो बोला, उसने वही सुना न!
"और सुन लेट मत करना समझा!" कहते हुए जाह्नवी कमरे की ओर बढ़ गई।
"हूं..!" निमय ने धीरे से कहा। 'चाहता तो मैं भी यही था, पर कभी कह ना सका, क्योंकि तुझे पापा के साथ होने में खुशी मिलती है, और मुझे तेरे…!'
'तुझे क्या लगता है जानी दुश्मन! तू अकेले प्यार करता है मुझसे, मैं तुझ से नहीं कर सकती क्या..!' जाह्नवी के होंठो पर आज गजब की मुस्कान छाई हुई थी।
उधर किचेन में..! शर्मा जी बैठे हुए मिसेज शर्मा से बातें कर रहे थे। मिसेज शर्मा भी शर्मा जी से बातें कर रही थी, मगर सभी ने दो दिन पहले हुई घटना को छिपा लिया था जिस कारण शर्मा जी को इसके बारे में कुछ भी पता न था।
"ये इन दोनो की क्या हुआ है जी! देखिए तो भला ऐसे लड़े जा रहे हैं।" निमय और जाह्नवी को आपस में बहस करता देख मिस्टर शर्मा बोले।
"कुछ नहीं शर्मा जी, आपके सपूत बहादुर बनने की शिक्षा ले रहे हैं!" रोटियां बेलती हुई मिसेज शर्मा ने हंसते हुए जवाब दिया।
"अरे सुनिए तो शर्माइन जी! आज सुबह जानू बेटा हमारे पास आई और बोली कि अब से हम डायरेक्ट अपने ऑफिस के लिए निकल जाएं वो निमय के साथ चली जायेगी।" मिस्टर शर्मा ने जाह्नवी की बातें बताते हुए कहा।
"ये तो बढ़िया है ना शर्मा जी, इसी बहाने हमारे बच्चों में प्यार और बढ़ेगा।" मिसेज शर्मा खुश होते हुए बोलीं।
"हमको तो कुछ और ही चक्कर लग रहा है, यहां से बस पकड़ने के लिए एक किलोमीटर दूर मैन हाईवे तक जाना भी पड़ता है, और जानू ऐसे अचानक से बोल के गई, मतलब ऐसा कुछ होता तो पहले से बताती ना!" मिस्टर शर्मा ने परेशान होते हुए कहा।
"क्या शर्मा जी, बच्चे नहीं है अब वो, और जब दोनो को साथ जाना है तो इसमें परेशानी की बात है, इससे तो उनका आपसी मेलजोल और प्रेम और प्रगाढ़ होगा।" मिसेज शर्मा ने समझाते हुए कहा।
"यही तो दिक्कत है, अगर कुछ ज्यादा प्रगाढ़ हो गया न तो या तो हमको घर जमाई बसाना पड़ेगा या अपना इकलौता लड़का उसकी बहन के साथ विदा करना पड़ेगा।" मिस्टर शर्मा ने कहा, उनके चेहरे पर प्रश्नवाचक रोष के भाव थे।
"क्या आप भी ना! शर्मा जी ये सब का टेंशन करने की जिम्मेदारी हम महिलाओं की है, आप ज्यादा ना सोचिए आराम से खाइए और जाइए, कम से कम अब ये तो नहीं होगा कि आप लेट हो जायेंगे, और तो और अब निम्मी को भी टाइम से जाना पड़ेगा।" मिसेज शर्मा ने मिस्टर शर्मा को बेलन से धकेलते हुए हंसकर खुशी से कहा।
"हां आप ठीक ही कह रही हैं, शायद इसी वजह से जानू ने भी उसके साथ जाने का फैसला लिया हो!" शर्मा जी ने मुस्कुराते हुए कहा, उनके चेहरे पास खुशी ने फिर से अपना बसेरा बना लिया था।
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फरी रोज की तरह अपनी सभी क्रियाओं दुहराते हुए एकदम समय से जाग चुकी थी। अलार्म पर अब भी तकिया पड़ा हुआ था, वह किचेन में चाय चढ़ाकर जल्दी जल्दी से ब्रश कर रही थी।
"हे राम! मैंने किसी तरह उस लड़की को समझाने की कोशिश की, वो मान भी गई फिर उसे पता नहीं क्या हुआ जो सिर दर्द होने लगा!" फरी के दिमाग में अनगिनत ख्यालात बिजली की भांति दौड़ लगा रहे थे।
"शांत हो जा फरी! तू ही कुछ ज़्यादा सोच रही है, उसने तो सीधा बोल दिया था कि फर्स्ट सेकेंड आना तो लगा रहता है, अब जरूरी थोड़े है कि सबके सिर दर्द की वजह तू ही हो.!" फरी खुद से ही खुद को समझाने लगी। वह वाश बेसिन पर जाकर आंखो में पानी का छींटा मारते हुए मुंह धोकर किचन की ओर भागी, अब तक चाय बनकर तैयार हो चुकी थी, उसने चाय छानते हुए अपने बड़े से कप में निकाल लिया।
"मुझे समझ नहीं आता कि क्या सही क्या गलत है, मैं जानबूझकर कभी किसी का दिल नहीं दुखाती मगर….!" फरी का दिमाग अब भी फालतू में सोचने से बाज नहीं आया था, वह चाय वहीं टेबल पर रखकर हाथ में डायरी लिए टहल रही थी। "हो सकता है मैं ही कुछ ज्यादा सोच रही हूं, मैं बेकार में लोगो की ओर ज्यादा ध्यान दे रही हूं। मुझे तो बस अपनी पढ़ाई से मतलब रखना है।" खुद से ही बड़बड़ाती हुई फरी अब तक भी किसी स्पष्ट नतीजे पर नहीं पहुंच पा रही थी, न चाहते हुए भी जाह्नवी उसके मन के कोने में अपना घर कर गई थी क्योंकि वह कॉलेज में जहां भी जाती थी, सभी मेनली उसकी बुराई करते हुए ही नजर आते थे।
वह डायरी के पन्ने पलटते हुए कुछ सोचते हुए खड़े खड़े ही चाय पीने लगी, एक घूंट पीकर उसने कप को वापस टेबल पर रख दिया और हाथ में पेन नचाते हुए डायरी में कुछ लिखने लगी।
"प्यारी डायरी!
गुड मॉर्निंग
तुम्हारे अलावा शायद मेरे पास कोई भी नहीं है जिससे मैं अपने मन की सभी बात कह सकूं! तुम तो जानती ही हो कि मैं हर रोज उलझी रहती हूं, मुझे कोई सुलझाने वाला भी नहीं है ना, ना मेरी बात सुनने समझने के लिए कोई है ना मुझे समझाने के लिए!
मगर मैं कमज़ोर नहीं हूं, हां सोच सोचकर ओवरथिंकर जरूर बन गई हूं! पर तुम ही बताओ ना, कोई बात जबरदस्ती दिमाग में भरी जाए तो उसका क्या करूं? खैर जाने दो मेरे कॉलेज जाने का वक्त हो रहा है, हां मैं टाइम से नाश्ता कर लूंगी, तुम परेशान मत होना।
'ये उलझन सी है मेरी, कुछ तो करी गई है
बातें सोचती नहीं,पर जबरदस्ती भरी गई है।
मेरी पास में नहीं है मुक्कमल तजुर्बा कोई
मुसलसल ये सब इस जमाने से करी गई है।'
चलो अब तो रात शाम को मुलाकात होगी, रोज रोज तुम्हें कॉलेज ले जाना भी अच्छा नहीं लगता ना! अभी भी दिमाग में कई ख्यालात हैं पर सबको लिखने बैठी तो उमर गुजर जायेगी।
है ना…!"
डायरी को बंद कर सबकुछ समेटते हुए फरी अपने कमरे की ओर नीचे भागी।
क्रमश:….
shweta soni
29-Jul-2022 11:36 PM
Nice 👍
Reply
🤫
26-Feb-2022 02:39 PM
ये पार्ट कुछ अटपटा लगा.... जैसे बढ़ाया हुआ। 👍👍
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मनोज कुमार "MJ"
26-Feb-2022 09:30 PM
Thank you
Reply
Seema Priyadarshini sahay
02-Feb-2022 04:04 PM
सुंंदर भाग
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मनोज कुमार "MJ"
26-Feb-2022 09:30 PM
Thank you
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